अपने ज्योतिष गुरु श्री के.न.राव और स्वर्गीय श्री कर्नल अशोक गौड़ के आशीर्वाद के साथ संहिता ज्योतिष सम्बंधित लेख श्रृंखला में अपना पहला लेख प्रस्तुत करता हूँ।
सहिंता ज्योतिष में सूर्य वीथी कुंडली या यूँ कहें की संक्रांत कुंडली का एक पूर्ण महत्व है। संहिता ज्योतिष में ये मान्य सिद्धांत है कि सूर्य का चर राशि में प्रवेश आगामी तीन महीने के बारे में संकेत दे देता है , इसी वजह से (1,4 ,7 , 10 ) मेष ,कर्क, तुला और मकर राशि प्रवेश की सक्रांत या सूर्य वीथी कुंडली का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही विषय अध्ययन के लिए पक्ष कुंडलियों की भी उपयोगिता भी जगविदित है , प्रत्येक मास दो पक्ष कुंडलिया बनती है अर्थात पूर्णिमा और अमानिशा की कुंडली।
सहिंता ज्योतिष में ग्रहण कुंडली का भी बहुत महत्व होता है। इस वर्ष यूँ भी छह माह के अंतराल में चार ग्रहण हैं , दो चंद्र ग्रहण और दो सूर्य ग्रहण। और आगामी तीन महीने के भीतर ही अर्थात जून माह में दो ग्रहण हैं।
ज्ञात हो की इस वर्ष 13 /04 /2020 को 20 :24 पर सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहा है। यानि मेष सक्रांत की कुंडली। इससे आगे आने तीन महीने की अवधि को समझने में मदद मिलेगी की प्रकृति ने मानव के लिए क्या तय किया है और वो इसे कितना समझ पाता है।
सहिंता ज्योतिष में सूर्य वीथी कुंडली या यूँ कहें की संक्रांत कुंडली का एक पूर्ण महत्व है। संहिता ज्योतिष में ये मान्य सिद्धांत है कि सूर्य का चर राशि में प्रवेश आगामी तीन महीने के बारे में संकेत दे देता है , इसी वजह से (1,4 ,7 , 10 ) मेष ,कर्क, तुला और मकर राशि प्रवेश की सक्रांत या सूर्य वीथी कुंडली का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही विषय अध्ययन के लिए पक्ष कुंडलियों की भी उपयोगिता भी जगविदित है , प्रत्येक मास दो पक्ष कुंडलिया बनती है अर्थात पूर्णिमा और अमानिशा की कुंडली।
सहिंता ज्योतिष में ग्रहण कुंडली का भी बहुत महत्व होता है। इस वर्ष यूँ भी छह माह के अंतराल में चार ग्रहण हैं , दो चंद्र ग्रहण और दो सूर्य ग्रहण। और आगामी तीन महीने के भीतर ही अर्थात जून माह में दो ग्रहण हैं।
ज्ञात हो की इस वर्ष 13 /04 /2020 को 20 :24 पर सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहा है। यानि मेष सक्रांत की कुंडली। इससे आगे आने तीन महीने की अवधि को समझने में मदद मिलेगी की प्रकृति ने मानव के लिए क्या तय किया है और वो इसे कितना समझ पाता है।
इसी तीन महीने की अवधि के दौरान शुक्र नक्षत्र वीथी का भी अध्य्यन किया जायगा। शुक्र इस तीन महीने की अवधि में रोहिणी , मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्रों में विचरण करेगा। और इन तीनो नक्षत्रो में शुक्र दक्षिण गमन होता है जिसे गजवीथी भी कहा जाता है। इसी अवधि के दौरान शुक्र वक्री भी होगा और अस्त भी होगा यानि
14 /05 /2020 को शुक्र वक्री होगा।
30/05/2020 को शुक्र अस्त हो जायगा।
08/06/2020 को शुक्र उदय होगा।
मेष सक्रांत 13-04-2020 @ 20:24 पर तुला लग्न में घटित हो रही है।
- तुला लग्न है और विशाखा नक्षत्र है।
- चन्द्रमा धनु में पूर्वाषाढ नक्षत्र में है
- लग्न नक्षत्र विशाखा का स्वामी बृहस्पति है और चंद्र नक्षत्र पूर्वाषाढ में है।
- सूर्यदेव मेष लग्न में केतु के नक्षत्र अश्विनी में होना स्वाभाविक ही है , साथ ही सूर्य पर तीसरे भाव से केतु द्वारा देखे जाते हैं, और केतु भी मूल नक्षत्र यानि केतु के दो नक्षत्रो का सूर्य पर प्रभाव है।
- मंगल की भी सूर्य पर द्रिष्टि है।लग्नेश शुक्र अष्टम भाव में स्वराशि वृषभ में हैं और चतुर्थ भाव से तृतीयेश एवं द्वादशेश बृहस्पति की, जो की नीच अवस्था में भी है, द्रिष्टि है।
- लग्न पर सूर्य और शनि दोनों की द्रिष्टि है।
अर्थात लग्न और लग्नेश दोनों ही पीड़ित हो रहे हैं।
मेष सक्रांत 13-4-2020 @ 20:24 पर कालपुरुष की कुंडली अर्थात मेष लग्न की कुंडली।
- इस कुंडली में भी लग्न और सप्तम दोनों भाव पीड़ित हैं।
- चतुर्थेश चन्द्रमा भी राहु केतु की धुरी में हैं।
- दूसरे भाव में शुक्र पर नीच अवस्था के बृहस्पति की दृष्टि है।
- बारहवें भाव को वध तारा पर नीच अवस्था में बुध पीड़ित कर रहे हैं।
- देखा जाय तो 1,2,3,4,5,6,7,9,10,12 संचालित हो रहे हैं।
- अच्छी बात ये है की लग्नेश और पंचमेश का सुखद संयोग बनता है।
विशेष :-
1 . इस कुंडली में तीव्र गति के ग्रह मंद गति के ग्रह से अवरुद्ध हो रहे हैं।
- शुक्र राहु से अवरुद्ध हो रहे हैं।
- बृहस्पति शनि से अवरुद्ध हो रहे हैं।
- चन्द्रमा मंगल ,शनि, और बृहस्पति से अवरुद्ध हो रहे हैं।
2. शनि और बृहस्पति दोनों उत्तरा अषाढा नक्षत्र पर हैं।
3. शुक्र और चन्द्रमा दोनों ही 14 डिग्री (अंशो) पर हैं।
4. शुक्र रोहिणी नक्षत्र पर हैं और चन्द्रमा राहु केतु से पीड़ित हैं।
5. तुला राशि और सप्तम भाव का पीड़ित होना यानि युद्ध जैसी अवस्था या युद्ध होना भी समझा जा सकता है।
परिणाम क्या समझ आता हैं :-
- रोहिणी , मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्रो में शुक्र दक्षिण गमन होता है। और इसका प्रभाव भी तीन महीने रहता है।
- संहिंता ज्योतिष के विद्वानों के मतानुसार इसके परिणाम स्वरूप जल और अनाज सूख जाते हैं।
- राजा और महाजन दोनों पीड़ित होते हैं , धन का नाश होता हैं।
- प्रजा का विनाश होता है और पृथ्वी पर उपद्रव व उत्पात होते है
- रोहिणी में शुक्र अतिचारी भी हो रहा हो तो महामारी , अतिवर्षा या वर्षा का न होना , मंहगाई , जनमारी ,अर्थात दुर्भिक्ष और भय से राष्ट्र विलीन हो जाते हैं। पृथ्वी शमशान हो जाती है।
- बारहवें भाव का नीच अवस्था में बुध, जो की तीसरे भाव के स्वामी भी हैं , परिवहन व्यवस्था को नुकसान पंहुचा रहे है , अर्थात रेल, रोड,सब को नुक्सान , संस्थाओ पर खर्चा दिखाई देता है।
- मकर का शनि यदि वक्री हो जाय तो धातु और वाहन महंगे, खेती का विनाश , अनाज की उपज खराब, रोग के कारण प्रजा का विनाश , जनता में भय , अशांति होती है।
भाव पीड़ित हो तो :-
- लग्न पीड़ित सब पीड़ित
- दूसरा भाव पीड़ित तो बैंक फेल , बैंक व्यवस्था घाटे में, आर्थिक संसाधनों की कमी।
- तीसरा भाव पीड़ित हो तो परिवहन व्यवस्था घाटे में, सामाजिक संपर्क में कमी , तकनीकी मामलों में दवाब होता है।
- चतुर्थ भाव पीड़ित हो तो खराब मौसम , सत्ता पर दवाब
- पांचवा भाव पीड़ित हो तो छात्रों को नुकसान , शिक्षा संस्थानों पर दवाब, मनोरंजन उद्योग को नुकसान।
- छठा भाव पीड़ित हो तो जनता बीमारी से त्रस्त , महामारी
- सप्तम भाव पीड़ित हो तो युद्ध जैसे हालत ( देखें : 20/03/2020 का कोरोना वायरस पर लेख )
- नवम भाव पीड़ित हो तो व्यपार पर दवाब। धार्मिक संस्थानों पर दवाब।
- दशम भाव पीड़ित हो तो सरकार पर दवाब , बीमारी का फैलाव , किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मौत।
- बारहवां भाव पीड़ित हो तो खर्चा ज्यादा , अपराध में बढ़ोतरी , हॉस्पिटल क्षेत्र पर दवाब।
राशि संघटा चक्र :
कई बार कुंडली में दर्शित योगों के प्रभाव को पुनः निरिक्षण की आवश्यकता होती है जिससे निश्चिंतता प्राप्त होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के चक्रों का अध्ययन किया जाता है , राशि संघटा चक्र का भी यही उपयोग होता है। और कई बार कुंडली में योग नहीं दिखाई नहीं दिखाई देता मगर चक्र में दिखता है।
युद्ध और युद्ध जैसी स्थिति के लिए मंगल और शनि का योग देखा जाता है , अगर ये युति कुंडली में दिख भी रही है तो भी हम इसको राशि संघटा चक्र में पुनः निरिक्षण करेंगे।
कई बार कुंडली में दर्शित योगों के प्रभाव को पुनः निरिक्षण की आवश्यकता होती है जिससे निश्चिंतता प्राप्त होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के चक्रों का अध्ययन किया जाता है , राशि संघटा चक्र का भी यही उपयोग होता है। और कई बार कुंडली में योग नहीं दिखाई नहीं दिखाई देता मगर चक्र में दिखता है।
युद्ध और युद्ध जैसी स्थिति के लिए मंगल और शनि का योग देखा जाता है , अगर ये युति कुंडली में दिख भी रही है तो भी हम इसको राशि संघटा चक्र में पुनः निरिक्षण करेंगे।
भारत में :-
- वृषभ राशि पीड़ित है यानि पूर्वी पश्चिमी समुद्री किनारे यानि कर्णाटक , महारष्ट्र में असर पड़ेगा।
- कर्क राशि पीड़ित है यानि राजिस्थान , गुजरात में असर पड़ेगा।
- मकर राशि पीड़ित है यानि बिहार , उड़ीसा और बंगाल में असर पड़ेगा।
- मिथुन राशि पीड़ित है परिवहन व्यवस्था अर्थात रेल, सड़क परिवहन को नुकसान।
विदेश में :-
- तुला राशि पीड़ित है यानि टर्की , अमेरिका में असर पड़ेगा।
- मकर राशि पीड़ित है यही चीन , कोरिया , इंडोनेशिया , में असर पड़ेगा।
नोट : उपरोक्त लेख इस शृंखला का पहला लेख है, शीघ्र ही दूसरे लेख के साथ पुनः उपस्थित होऊंगा।
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