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रविवार, 23 फ़रवरी 2020

आस्था और ईश्वर

बेइन्ताह भीड़ थी , अगले दिन दिवाली थी हरेक आदमी घर जाना चाहता था, मगर धार्मिक और सामाजिक रीति के चलते पिता की मृत्यु के बाद  गंगा जी में  दीये  प्रवाहित करना भी जरुरी था।  दिल्ली से गढ़गंगा की ढाई घंटे के दूरी सात घंटे की जद्दोजहद के बाद पूरी हुई।  जल्दी जल्दी करते भी रात  के दस बज ही चुके थे , घर कैसे पंहुचा जाय , अपना खुद का तो कोई साधन था नहीं , भीड़ के चलते किसी बस में जगह मिलना चमत्कार ही होता और चमत्कारों पे मेरा भरोसा ही नहीं है।  अकेला होता तो फिर भी सोचता मगर माँ के साथ था तो सोचना भी बेकार था।   
क्या करूँगा और कैसे , बस दिमाग यही सोच रहा था , घर भी पहुंचना जरुरी था,  कल दिवाली है, कैसे होगा , सुबह से चले हुए , भीड़ में पीसे हुए, न खाया न पिया , बस एक चाय थी जो  शरीर में दम दिए हुए थी।  वरना तो भीड़ ने जान निकाल  ही ली थी।  देखते है क्या होगा , राम राम करते  दोनों माँ बेटे गंगा के पुल पर आ गए।  

शायद वो मारुती वैन वाला हमारे लिए ही प्रभु  ने भेजा होगा , अचानक एक वैन सामने , एकदम सामने रुकी - दिल्ली दिल्ली दिल्ली , दिमाग तुरंत हरकत में आया और चिल्ला के उसकी तरफ झपटे -हाँ हाँ , और तुरत दरवाजा खोल के बैठ भी गए , 
सौ रुपए एक सवारी के - उस गाड़ी वाले ने चेताया , मगर हम तो किसी भी कीमत पे तैयार ही थे।  तभी एक भारी भरकम युगल भी गाड़ी में सवार हो लिए , दोनों ही भारी थे , उनको भी दिल्ली पहुँचना था।  हम शायद किस्मत के और प्रभु कृपा के धनी थे की उस मेले की भीड़ में  भी हमको खाली गाड़ी मिल गई , सबसे बडी  बात की त्यौहार पर  घर पहुँच जायंगे।

ड्राइवर लखनऊ से किसी को छोड़ कर वापिस लौट रहा था कुछ अतिरिक्त कमाई के लिए उसने दिल्ली की सवारी ले ली , छोटा से कद का नेपाली युवक था , राजू नाम था उसका , करोलबाग़ में  कही नौकरी करता होगा क्युकी उसको भी करोलबाग जाना था , साथ बैठे हुए परिचय हो ही जाता है और फिर वो तो एक जरिया भी था घर पहुंचने का।  उम्मीद थी की ढ़ाई तीन घंटे मई घर पहुंच ही जायँगे, मगर उम्मीद सुबह से पूरी तो हो रही थी मगर थोड़ी या बहुत देर से पूरी हो रही थी।

सुबह से ईश्वर किसी न किसी रूप में मदद कर  ही रहा था वरना तो वक्त ने परीक्षा में कोई कमी ही नहीं की थी।
अभी कोई 15 -20 किलोमीटर ही चले होंगे की वैन झटके ले कर रुक गई , क्या हुआ -पता नहीं , ड्राइवर ने कोशिश  की मगर सफलता नहीं मिली, धक्का लगाना पड़ेगा, ड्राइवर बोला।  इतना सुनते ही इंसानियत और भय के बीच बातचीत शुरू हो गई , भरी भरकम युगल तो दिल से बड़ा ही हल्का साबित हुआ , कमबख़्तो ने डरा और दिया , धक्का मरने के लिए हम नीचे उतरे के ये भगा यहाँ से और हम सब इसके साथियो द्वारा लूट लिए जायँगे , इस रोड पे अक्सर ऐसा होता ही रहता हैं , तर्क करने की क्षमता शायद उस वक्त चिंता या डर की वजह से कुंद हो गई थी वर्ना सवाल तो बनता था की रोज़ वो इस रोड पे क्यों आते  है  और लूटने के लिए हमारे पास था ही क्या , गंगा जी का प्रसाद !!

बड़ी ही बेचारगी से ड्राइवर बोला भैय्या आप स्टेयरिंग संभाल लो में धक्का मरता हूँ , अब अफ़सोस की बरी हमारी थी की हमको गाड़ी चलाना नहीं आता था , उन भारी सज्जन को भी नहीं , और गाड़ी से उतरने को भी वो तैयार नहीं थे , और अगर आती भी होती तो भी उस हल्के फुल्के ड्राइवर से तो इतनी उम्मीद नहीं थी की वो इतने वजन को धक्का मार पाता , अब बचा कौन - मै , और कौन , माँ को चिंता में  छोड़ मैं ही निचे उतरा और ड्राइवर ने स्टेयरिंग संभाला , घर पे कभी पानी की बाल्टी भी नहीं उठाई मगर अब इतनी भारी वैन को धक्का मरना पड़ा , मारा भी , और ईश्वर ने कुछ ताकत भी अतिरिक्त दी वक्त की नाजुकता को समझते हुए , मारा जी धक्का , मगर हुआ कुछ नहीं , शायद पेट्रोल खतम हो गया होगा , मगर इस बात को ड्राइवर नहीं मानने को तैयार था , बाबू जी वैन  CNG पे चल रही थी , लखनऊ से बाहर निकलते ही मैंने पेट्रोल और CNG डलवाई थी , अब उसको कैसे समझाता की पेट्रोल पंप वाले ने गैस तो डाली होगी मगर पेट्रोल के लिए सिर्फ मीटर चला दिया होगा ,होता है यार , हिचकते हुए उसने मान ही लिया क्युकी कोई और कारन तो उसको भी समझ नहीं आ रहा था की वैन  क्यों नहीं स्टार्ट हो रही है।

आप लोग गाड़ी को अंदर से बंद करके यहीं  बैठे मै  कही से पेट्रोल लाता हूँ , उसके पास दो लीटर की बोतल ही मिली, यही सोचा गया की दो लीटर पेट्रोल में गाड़ी कुछ दूर तो चल ही लेगी आगे कोई पेट्रोल पंप मिल जायगा।

उस बंद गाड़ी में एक सवा घंटे बैठे हुए क्या बीती जी पूछो ही मत , शक , संदेह और डर के विभिन्न रूप उस वक्त सुनने को और महसूस करने को मिले, भारी युगल खुद तो डर ही रहे थे बोल बोल के मेरी माँ को भी डरा रहे थे और वो मुझे , मगर कही भीतर दिल कह रहा था कुछ नहीं होगा , कुछ हुआ भी नहीं और ड्राइवर पेट्रोल ले के वापिस आ गया , पेट्रोल डाला धक्का मारा गारी स्टार्ट हो गई और हम चल पड़े।

सकून तो मिला मगर ज्यादा देर के लिए नहीं , हापुड़ से कुछ पहले ही वैन फिर रुक गई और कोई पेट्रोल पंप भी नहीं मिला था रस्ते में , अब क्या , फिर वही धक्का परेड , फिर मैं धक्का मार रहा था ड्राइवर स्टेयरिंग संभाल रहा था , इस बार थोड़ी ज्यादा लम्बी  घिसाई हो गई , मगर ईश्वर होता है जनाब,  होता है, दिखाया उसने फिर से चमत्कार , पता नहीं कहाँ से हाईवे पेट्रोल की जीप आ गई, और वो रुके भी , पूछने पैर हमने अपना बेहाल वाला हाल बताया , हवलदार ने पूछा की रस्सी है, कमाल था  यार, की रस्सी भी अपनी गाड़ी में  नहीं थी फिर पुलिस वालो ने ही अपनी गाड़ी से रस्सी निकाल के  दी , हमने गाड़ी बांधी और वो हमको ले के चले तीन चार किलोमीटर के बाद हापुड़ फ्लाईओवर के नीचे वाले पेट्रोल पंप पे उन्होंने हमें छोड़ दिया , और हमारा वो डर भी दूर कर दिया की हर पुलिस वाला पैसो का ही मुरीद होता है , पूछने के वावजूद उन्होंने हमसे कुछ नहीं लिया।

हमने पेट्रोल भरवाया और अपनी यात्रा फिर शुरू की , मगर आज का दिन शायद अभी खतम नहीं हुआ था , थोड़ी दूर चलते ही गाड़ी फिर रुक गई , (बहुत जद्दोजेहद करनी पड़ी अपनी आस्था को बचाने को  लिए ,की आज जो हो रहा है वो ईश्वर की मर्जी नहीं है ) अब की बार भरी युगल खुल कर बोल ही पड़े शाब्दिक झगड़ा शुरू भी हो गया , जैसे तैसे शांत करवा कर फिर से धक्का देना शुरू किया।

ईश्वर से नाराजगी होने ही वाली थी की फिर चमत्कार हुआ , एक और जीप हमारे पास आ रुकी , कोई दूधिया था दूध ले के दिल्ली ही जा रहा था , उसने शयद हमारी मज़बूरी और परेशानी समझ ली थी वर्ना देखी तो बहुत लोगो ने थी , देखना और  समझना यही तो इंसान की पहचान होती है , उसने सांत्वना वाले शब्दों मे कहा चिंता न करो मैं दिल्ली ही जा रहा हु उसने अपनी रस्सी से हमारी गाड़ी को बंधा और हम चल पड़े , कुछ दूर ही चले होंगे की हमारी गाड़ी भी गर्म हो के स्टार्ट हो गई , उस भाई को हॉर्न मार के रोका और बताया की अब हमारी गाड़ी स्टार्ट हो गई है , उसने रस्सी खोलते हुए कहा चिंता न करना मैं भी साथ साथ ही चल रहा हूँ। मगर अब शायद हमारी परशानी का वक्त खतम हो चला था , उसके बाद गाड़ी नहीं रुकी और हम चलते चले।

उस भारी युगलको दिलशाद गार्डन छोर के ड्राइवर ने हम माँ बेटे को चार बजे सुबह घर उतारा , जबरदस्ती उसको पैसे दे के हमने विदा किया , और दिवाली वाले दिन हम घर लौट ही आये।

सोचता हूँ तो वो गाड़ी ड्राइवर , हाईवे पेट्रोल के सिपाही , वो दूधिया कौन थे ये लोग जो अचानक ही मेरी मदद को आते रहे और मुझे घर के तरफ लाते रहे , शायद ईश्वर ऐसे ही काम करता है और मदद देता है , वो सब ईश्वर के रूप थे जो मुझे उस रात उस बियावान में मुझे मिले , मेरा हाथ पकड़ा और मेरी आस्था को खंडित नहीं होने दिया के मेरा ईश्वर हमेशा मेरे साथ है।

ॐ भगवतेः वसुदेवाय नमः

आस्था और ईश्वर


3 टिप्‍पणियां:

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With the blessing of my Guru Sh. K.N.Rao Ji and Lt. Sh. Col. Ashok Gaur, I am here again with my new Write up on mundane astrology . Ec...