किसी महिला के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनी तो बाहर निकल के देखा की एक महिला दरबान से भीतर आने के लिए उलझ रही थी। दरबान उस महिला को भीतर आने से रोक रहा था। तभी बॉस का इशारा देख कर उसने उन्हें भीतर आने दिया।
शायद उग्रता का प्रभाव इतना ज्यादा था की उस महिला ने भीतर आने का इंतज़ार नहीं रखा और वही से पर बरस पड़ी - "क्या चलरहा है तुम्हारे ऑफिस में "
" काम करते हो या रंगरलियां मानते हो "
"अय्याशी का अड्डा बना रखा है , काम बस अय्याशी करना ही है "
"मर्द साले कुत्ते होते है "
बॉस की शक्ल देखने वाली थी , हम भी हैरान -परेशान थे की हो क्या रहा है। और ये महिला कोन है। हड़बड़ाते हुए बॉस ने उनको शांत रहने को कहा और भीतर चल कर शांति से बात करने की प्रार्थना की ,मगर भाई साहब सब बेकार , उल्टा आवाज़ और भी जानदार और शब्द और भी धारदार हो चले थे , फिर अचानक से उसने रोने शुरू कर दिया। अजीब हालत थी , क्रोध और बेबसी दोनों ही अपनी चरम अवस्था पर पहुंच चुकी थी और उससे ऊपर सिर्फ दुःख की ही सीढ़िया बाकि थीं , अब शायद भावनाय चरम पर थी इसलिए आंसू बन के बह रही
रोते-रोते ही उसने बताया की वो रमापति की धर्मपत्नी है। अब तो हैरानी की बात थी , रमापति हमारी कंपनी में मुख्य सलाहकार है , बेहद जहीन , पाबंद , और समझदार व्यक्ति हैं। किसी भी विषय पर आप उनसे सलाह ले सकते है। अब उन साहेब की बीबी ! इस क्रोधित और बेचैन अवस्था में , समझ नहीं आ रहा था कुछ भी की आखिरकार हुआ क्या , जो उनकी पत्नी ने ऐसा कदम उठाया।
"मुझे वंचिता से मिलना है "- रमापति की पत्नी ने चिल्ला के बोला।
वंचिता हमारे ही ऑफिस में सहकर्मी है , वंचिता खुद ही उठ के आ गई , वंचिता को देखते ही रमापति की पत्नी एकदम रौद्र और भयंकर रूप में प्रवेश कर गई , क्या -क्या उसको सम्बोधन दिए , विभिन्न प्रकार की
गालियों से पूरा माहौल असहनीय हो गया, और वंचिता अवाक् रह गई की ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है , उसका कसूर क्या है? रोते -रोते ही रमापति की पत्नी ने बताया की रमापति वंचिता से रोज़ देर फ़ोन पे बातें करते रहते है , जो शायद उनके परिवार को अखर रहा होगा , एक दो बार कहा भी होगा मगर रमापति माने नहीं, नतीजा आज की घटना थी।
अब वंचिता की समझ में आया की मामला क्या है। उसने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी , हम सबने भी समझाया और किसी तरह मामला टाला , रमापति की पत्नी घर चली गई।
और अब बारी थी चटकारो की और ठहाको की , सब अपनी अपनी राय दे के मुस्कुराते और हँसते रहे। बस तीन लोगो को छोड़ कर , रोती हुई वंचिता , बालकॉनी में छुपे हुए रमापति और मैं।
मैं भी चुपचाप उन तीनो को समझने की कोशिश कर रहा था। रमापति की पत्नी में सहनशीलता थी नहीं या अति ही हो गई होगी। वंचिता का भी अपना परिवार है , फिर वो क्यों रोज़ घंटो रमापति से बात करने लगी ? और अगर बात होती भी थी तो बुरा क्या था ?! और रमापति उनकी भूमिका क्या है , संदेहास्पद तो है। वास्तविकता उनको खूब पता थी फिर भी वो नज़रअंदाज़ करते रहे , प्रथमिकता तय करना उनकी खूबी है फिर यहाँ कैसे चूके?
अब होगा क्या , वंचिता को नौकरी से निकला जायगा या वो खुद छोड़ देगी , कुछ भी हो रमापति सुरक्षित हैं। बस अब चर्चाओं का केंद्र उनकी पत्नी और वंचिता ही रहेंगी।
अब तक सभी सहयोगी उन दोनों महिलाओ का चरित्र प्रमाणपत्र तैयार कर चुके होंगे , क्युकी ठहाको की आवाज़े अभी भी आ रही है , बस उन दोनों महिलाओ के रोने की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही , जबकि शायद वो अभी भी रो रही हों।
शायद उग्रता का प्रभाव इतना ज्यादा था की उस महिला ने भीतर आने का इंतज़ार नहीं रखा और वही से पर बरस पड़ी - "क्या चलरहा है तुम्हारे ऑफिस में "
" काम करते हो या रंगरलियां मानते हो "
"अय्याशी का अड्डा बना रखा है , काम बस अय्याशी करना ही है "
"मर्द साले कुत्ते होते है "
बॉस की शक्ल देखने वाली थी , हम भी हैरान -परेशान थे की हो क्या रहा है। और ये महिला कोन है। हड़बड़ाते हुए बॉस ने उनको शांत रहने को कहा और भीतर चल कर शांति से बात करने की प्रार्थना की ,मगर भाई साहब सब बेकार , उल्टा आवाज़ और भी जानदार और शब्द और भी धारदार हो चले थे , फिर अचानक से उसने रोने शुरू कर दिया। अजीब हालत थी , क्रोध और बेबसी दोनों ही अपनी चरम अवस्था पर पहुंच चुकी थी और उससे ऊपर सिर्फ दुःख की ही सीढ़िया बाकि थीं , अब शायद भावनाय चरम पर थी इसलिए आंसू बन के बह रही
रोते-रोते ही उसने बताया की वो रमापति की धर्मपत्नी है। अब तो हैरानी की बात थी , रमापति हमारी कंपनी में मुख्य सलाहकार है , बेहद जहीन , पाबंद , और समझदार व्यक्ति हैं। किसी भी विषय पर आप उनसे सलाह ले सकते है। अब उन साहेब की बीबी ! इस क्रोधित और बेचैन अवस्था में , समझ नहीं आ रहा था कुछ भी की आखिरकार हुआ क्या , जो उनकी पत्नी ने ऐसा कदम उठाया।
"मुझे वंचिता से मिलना है "- रमापति की पत्नी ने चिल्ला के बोला।
वंचिता हमारे ही ऑफिस में सहकर्मी है , वंचिता खुद ही उठ के आ गई , वंचिता को देखते ही रमापति की पत्नी एकदम रौद्र और भयंकर रूप में प्रवेश कर गई , क्या -क्या उसको सम्बोधन दिए , विभिन्न प्रकार की
गालियों से पूरा माहौल असहनीय हो गया, और वंचिता अवाक् रह गई की ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है , उसका कसूर क्या है? रोते -रोते ही रमापति की पत्नी ने बताया की रमापति वंचिता से रोज़ देर फ़ोन पे बातें करते रहते है , जो शायद उनके परिवार को अखर रहा होगा , एक दो बार कहा भी होगा मगर रमापति माने नहीं, नतीजा आज की घटना थी।
अब वंचिता की समझ में आया की मामला क्या है। उसने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी , हम सबने भी समझाया और किसी तरह मामला टाला , रमापति की पत्नी घर चली गई।
और अब बारी थी चटकारो की और ठहाको की , सब अपनी अपनी राय दे के मुस्कुराते और हँसते रहे। बस तीन लोगो को छोड़ कर , रोती हुई वंचिता , बालकॉनी में छुपे हुए रमापति और मैं।
मैं भी चुपचाप उन तीनो को समझने की कोशिश कर रहा था। रमापति की पत्नी में सहनशीलता थी नहीं या अति ही हो गई होगी। वंचिता का भी अपना परिवार है , फिर वो क्यों रोज़ घंटो रमापति से बात करने लगी ? और अगर बात होती भी थी तो बुरा क्या था ?! और रमापति उनकी भूमिका क्या है , संदेहास्पद तो है। वास्तविकता उनको खूब पता थी फिर भी वो नज़रअंदाज़ करते रहे , प्रथमिकता तय करना उनकी खूबी है फिर यहाँ कैसे चूके?
अब होगा क्या , वंचिता को नौकरी से निकला जायगा या वो खुद छोड़ देगी , कुछ भी हो रमापति सुरक्षित हैं। बस अब चर्चाओं का केंद्र उनकी पत्नी और वंचिता ही रहेंगी।
अब तक सभी सहयोगी उन दोनों महिलाओ का चरित्र प्रमाणपत्र तैयार कर चुके होंगे , क्युकी ठहाको की आवाज़े अभी भी आ रही है , बस उन दोनों महिलाओ के रोने की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही , जबकि शायद वो अभी भी रो रही हों।
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