इतनी जोरदार हंसी सुन कर जिज्ञासावस पूछ ही लिया की - क्या बात है भाई , क्या पढ़ लिया फ़ोन में , जवाब अप्रत्याशित था - "भाई , पुरुष सिर्फ बदनाम हैं जबकि औरतें भी कम नहीं होती " अलग जवाब सुन कर जिज्ञासा और बढ़ी की ऐसा क्यों कहा, मित्र ने फ़ोन बढ़ाते हुए कहा कि लो पढ़ लो - " मेरे सपनो में तुम आए------ मेरे ब्लाउज का हुक भी टूट गया"। उनकी किसी महिला मित्र की लिखी हुई अंतरंग पंक्तिया थी जिनको पढ़ कर मेरे मित्र ने महिलाओ पर जोरदार उपहास किया और स्त्रियों को चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया।
मैं सिर्फ मुस्कुरा कर सोचने लगा की भरोसा भी कितना सस्ता हो गया है की रिस्तो के साथ अपनी सूरत और सीरत भी बदल लेता है। किसी भरोसे के चलते उनकी उस महिला मित्र ने उनको इतनी उन्मुक्त पंक्तिया लिख भेजीं, मगर मेरे मित्र ने किसी भरोसे के तहत वो पंक्तिया मुझे पढ़ा दीं। उस महिला के भरोसे की तुलना में मित्र का मुझ पर भरोसा ज्यादा वजनदार निकला। मगर मैं भी इन पंक्तियों को लिख कर भरोसे का पुनः वजन तौल रहा हूँ। उस महिला मित्र पर और मेरे मित्र पैर उनके परिवार का भरोसा होगा , लाजिम ही है , किसी रिश्ते के प्रति उनकी जवाबदारी भी होगी। मगर भरोसा तो अपनी सूरत और सीरत बदलता रहता है।
अब सोचना यह है की भरोसा करके गलती किसने की , उस महिला मित्र नें या उसके परिवार वालो ने , मेरे मित्र या मित्र के परिवार वालो ने ,
या फिर मैंने ????????????
मैं सिर्फ मुस्कुरा कर सोचने लगा की भरोसा भी कितना सस्ता हो गया है की रिस्तो के साथ अपनी सूरत और सीरत भी बदल लेता है। किसी भरोसे के चलते उनकी उस महिला मित्र ने उनको इतनी उन्मुक्त पंक्तिया लिख भेजीं, मगर मेरे मित्र ने किसी भरोसे के तहत वो पंक्तिया मुझे पढ़ा दीं। उस महिला के भरोसे की तुलना में मित्र का मुझ पर भरोसा ज्यादा वजनदार निकला। मगर मैं भी इन पंक्तियों को लिख कर भरोसे का पुनः वजन तौल रहा हूँ। उस महिला मित्र पर और मेरे मित्र पैर उनके परिवार का भरोसा होगा , लाजिम ही है , किसी रिश्ते के प्रति उनकी जवाबदारी भी होगी। मगर भरोसा तो अपनी सूरत और सीरत बदलता रहता है।
अब सोचना यह है की भरोसा करके गलती किसने की , उस महिला मित्र नें या उसके परिवार वालो ने , मेरे मित्र या मित्र के परिवार वालो ने ,
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